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Kavita Kosh से
1.
ओस की बूंद
धुल में मिली
रचना बनी एक
नवल सृष्टि
16.
सिमटी जब
रचना बनी वही
सृष्टि से व्यष्टि
17.
मैंने तो की है
उनसे यारी सदा
जो हैं अकेले
18.
अनजाने हैं वे
खड़े-खड़े दूर से
देखें जो मेले
19.
मन है कामी
कामी बने आकामी
दास हो स्वामी
20.
सृष्टि का खेल
आकाश पर चढ़ी
उल्टी बेल
21.
दुःख औ सुख
जन्म मरण दोनों
हैं यात्रा क्रम
22.
पंचम से हैं
सप्तम तक जैसे
सुर संगम
24.
गरीबी है ये
अमीरी षड्यन्त्र
और ये तन्त्र
25.
सेवा का कर्म
सबसे बड़ा यहाँ
मानव-धर्म
26.
गुनिये कुछ
सुनिए या पढ़िये
फिर लिखिए
27.
चलने की है
कल को मेरी बारी
करी तैयारी