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आज कल तो रास्ता अँधे भी दिखलाने लगे
लो अँधेरे रौशनी का मर्म समझाने लगे

मंदिरो-मस्जिद में हर दिन भीड़ बढ़ती जा रही
इम्तिहानों के दिवस नज़दीक जो आने लगे

मेरे बेटे नौकरी तुझको तो मिलने से रही
खोल गुमटी पान की बाबू जी समझाने लगे

हैं विवश हम आप पर विश्वास करने के लिए
व्यर्थ ही क़समों पे क़समें आप क्यों खाने लगे

कैसे समझाएँ परिंदों को शिकारी हम नहीं
दान के दाने भी वो खाने से कतराने लगे

ये न भूलो, हमने ही तुमको बग़ल में दी जगह
यार तुम तो बैठते ही हमको धकियाने लगे

ऐ 'अकेला' अब तो बेशर्मी की भी हद हो गई
जन्म के झूठे हमें सच्चाई सिखलाने लगे
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