भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला' |संग्रह=अंग...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
|संग्रह=अंगारों पर शबनम / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
}}
{{KKCatGhazal‎}}‎
<poem>
बहुत भूखा है, बातों में वो तेरी आ नहीं सकता
खिलौने देके उस बच्चे को तू बहला नहीं सकता

कि अब इस मुल्क में ईमान ज़िंदा रखना मुश्किल है
कोई भी रेत में तो मछलियाँ तैरा नहीं सकता

ये असली फूल का भ्रम देने लायक़ हो भी जायेंगे
मगर इन काग़ज़ी फूलों को तू महका नहीं सकता

कोई दाता मिरे घर आके मुझको दान क्या देगा
भिखारी बन के मैं दर पे किसी के जा नहीं सकता

तेरा क़ानून फिर किस काम का तू ही बता मुन्सिफ़
किसी मुजरिम को वो मुजरिम अगर ठहरा नहीं सकता

मैं हँस लेता हूँ इसका ये नहीं मतलब कि मैं खुश हूँ
मुझे तक़लीफ़ कितनी है तुझे बतला नहीं सकता

अरे चूहे तू दावे लाख कर लेकिन यही सच है
गले में बिल्लियों के घंटियाँ पहना नहीं सकता

‘अकेला’ आपकी ईमानदारी की कमाई में
कोई दो वक्त की रोटी भी सुख से खा नहीं सकता
</poem>
338
edits