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|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
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{{KKCatKavita}}{{KKAnthologyGandhi}}<poem>देश में जिधर भी जाता हूँ,<br>उधर ही एक आह्वान सुनता हूँ<br>"जडता जड़ता को तोडने तोड़ने के लिए<br>भूकम्प लाओ।<br>लाओ ।घुप्प अँधेरे में फिर<br>अपनी मशाल जलाओ।<br>जलाओ ।पूरे पहाड पहाड़ हथेली पर उठाकर<br>पवनकुमार के समान तरजो।<br>तरजो ।कोई तूफान तूफ़ान उठाने को<br>कवि, गरजो, गरजो, गरजो !"<br><br>
सोचता हूँ, मैं कब गरजा था?<br>जिसे लोग मेरा गर्जन समझते हैं,<br>वह असल में गाँधी का था,<br>उस गाँधी का था, जिस ने हमें जन्म दिया था।<br><br>था ।
तब भी हम ने गाँधी के<br>तूफान तूफ़ान को ही देखा,<br>गाँधी को नहीं।<br><br>नहीं ।
वे तूफान तूफ़ान और गर्जन के<br>पीछे बसते थे।<br>थे ।सच तो यह है<br>कि अपनी लीला में<br>तूफान तूफ़ान और गर्जन को<br>शामिल होते देख<br>वे हँसते थे।<br><br>थे ।
गाँधी तूफान तूफ़ान के पिता<br>और बाजों के भी बाज थे।<br>थे ।
क्योंकि वे नीरवताकी आवाज थे।
</poem>