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वक़्त / कीर्ति चौधरी

41 bytes added, 14:55, 30 सितम्बर 2008
ख़ूब खिले हुए फूल को देख कर<br>
अचानक ख़ुश हो जाना,<br>
बड़े स्नेही सुह्रदय सुह्रद की हार पर<br>
मन भर लाना,<br>
झुँझलानाझुंझलाना,<br>अभिव्यक्ति के इन सीधे -सादे रूपों को भी<br>
सब भूल गए,<br>
कोई नहीं पहचानता<br><br>
यही तो एक लीक है|<br><br>
फिर भी दुख-सुख से यह कैसी निस्संगितानिस्संगता !<br>
कि किसी को कड़ी बात कहो<br>
तो भी वह बुरा नहीं मानता|<br><br>
 
यह कैसा वक़्त है?
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