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जंगल गाथा / अशोक चक्रधर

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पानी से निकलकर<brpoem>मगरमच्छ किनारे पर आयाएक नन्हा मेमनाऔर उसकी माँ बकरी,<br>इशारे जा रहे थे जंगल मेंराह थी संकरी।अचानक सामने से<br>आ गया एक शेर,बंदर को बुलाया.<br>लेकिन अब तोबंदर गुर्राया-<br>हो चुकी थी बहुत देर।खों खोंभागने का नहीं था कोई भी रास्ता, क्योंबकरी और मेमने की हालत खस्ता।उधर शेर के कदम धरती नापें,<br>तुम्हारी नजर में इधर ये दोनों थर-थर कापें।अब तो<br>शेर आ गया एकदम सामने,बकरी लगी जैसे-जैसेबच्चे को थामने।छिटककर बोला बकरी का बच्चा-शेर अंकल!क्या तुम हमें खा जाओगेमेरा कलेजा हैएकदम कच्चा?<br><br>शेर मुस्कुराया,उसने अपना भारी पंजामेमने के सिर पर फिराया।बोला-हे बकरी - कुल गौरव,आयुष्मान भव!दीर्घायु भव!चिरायु भव!कर कलरव!हो उत्सव!साबुत रहें तेरे सब अवयव।आशीष देता ये पशु-पुंगव-शेर,कि अब नहीं होगा कोई अंधेराउछलो, कूदो, नाचोऔर जियो हँसते-हँसतेअच्छा बकरी मैया नमस्ते!
मगर्मच्छ बोलाइतना कहकर शेर कर गया प्रस्थान,बकरी हैरान-<br>नहीं नहींबेटा ताज्जुब है, तुम्हारी भाभी ने<br>खास तुम्हारे लिये<br>भला ये शेर किसी परसिंघाड़े का अचार भेजा रहम खानेवाला है.<br><br>,लगता है जंगल मेंचुनाव आनेवाला है।
बंदर ने सोचा<br>ये क्या घोटाला है,<br>लगता है जंगल में<br>चुनाव आने वाला है.<br>लेकिन प्रकट में बोला-<br>वाह!<br>अचार, वो भी सिंघाड़े का,<br>यानि तालाब के कबाड़े का!<br>बड़ी ही दयावान<br>तुम्हारी मादा है,<br>लगता है शेर के खिलाफ़<br>चुनाव लड़ने का इरादा है.<br><br>--------
कैसे जाना, कैसे जाना?<br>पानी से निकलकरऐसे जानामगरमच्छ किनारे पर आया, ऐसे जाना<br>कि आजकल<br>इशारे सेभ्रष्टाचार की नदी में<br>बंदर को बुलाया.नहाने के बाद<br>बंदर गुर्राया-जिसकी भी छवि स्वच्छ हैखों खों, क्यों,<br>वही तुम्हारी नजर में तो मगरमच्छ मेरा कलेजा है.<br>?
-------------------------मगरमच्छ बोला- एक नन्हा मेमना<br>और उसकी माँ बकरी,<br>जा रहे थे जंगल में<br>राह थी संकरी।<br>अचानक सामने से आ गया एक शेर,<br>लेकिन अब तो<br>हो चुकी थी बहुत देर।<br>भागने का नहीं था कोई भी रास्तानहीं,<br>तुम्हारी भाभी नेबकरी और मेमने की हालत खस्ता।<br>खास तुम्हारे लियेउधर शेर के कदम धरती नापें,<br>इधर ये दोनों थर-थर कापें।<br>अब तो शेर आ गया एकदम सामने,<br>बकरी लगी जैसे-जैसे<br>बच्चे को थामने।<br>छिटककर बोला बकरी सिंघाड़े का बच्चा-<br>शेर अंकल!<br>क्या तुम हमें खा जाओगे<br>एकदम कच्चा?<br>शेर मुस्कुराया,<br>उसने अपना भारी पंजा<br>मेमने के सिर पर फिराया।<br>बोला-<br>हे बकरी - कुल गौरव,<br>आयुष्मान भव!<br>दीर्घायु भव!<br>चिरायु भव!<br>कर कलरव!<br>हो उत्सव!<br>साबुत रहें तेरे सब अवयव।<br>आशीष देता ये पशु-पुंगव-शेर,<br>कि अब नहीं होगा कोई अंधेरा<br>उछलो, कूदो, नाचो<br>और जियो हँसते-हँसते<br>अच्छा बकरी मैया नमस्ते!<br>अचार भेजा है.
इतना कहकर शेर कर गया प्रस्थानबंदर ने सोचाये क्या घोटाला है,<br>बकरी हैरान-<br>लगता है जंगल मेंबेटा ताज्जुब चुनाव आने वाला है.लेकिन प्रकट में बोला-वाह!अचार, वो भी सिंघाड़े का,<br>भला ये शेर किसी पर<br>यानि तालाब के कबाड़े का!रहम खानेवाला बड़ी ही दयावानतुम्हारी मादा है,<br>लगता है जंगल में<br>शेर के खिलाफ़चुनाव आनेवाला है।<br>लड़ने का इरादा है. कैसे जाना, कैसे जाना?ऐसे जाना, ऐसे जानाकि आजकलभ्रष्टाचार की नदी मेंनहाने के बादजिसकी भी छवि स्वच्छ है,वही तो मगरमच्छ है.---------
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