Changes

पीपल / त्रिलोचन

1,502 bytes added, 14:22, 21 अक्टूबर 2007
पात के प्रसार को<br>
कोमल कोमल परस से छूता हुआ|<br>
पहली कविता
 
 
 
चोट जभी लगती है
तभी हँस देता हूँ
देखनेवालों की आँखें
उस हालत में
देखा ही करती हैं
आँसू नहीं लाती हैं
 
और
जब पीड़ा बढ़ जाती है
बेहिसाब
तब
जाने-अनजाने लोगों में
जाता हूँ
उनका हो जाता हूँ
हँसता हँसाता हूँ।
 
दूसरी कविता
 
 
(1)
 
आज मैं अकेला हूँ
अकेले रहा नहीं जाता।
 
(2)
 
जीवन मिला है यह
रतन मिला है यह
धूल में
कि
फूल में
मिला है
तो
मिला है यह
मोल-तोल इसका
अकेले कहा नहीं जाता
 
(3)
 
सुख आये दुख आये
दिन आये रात आये
फूल में
कि
धूल में
आये
जैसे
जब आये
सुख दुख एक भी
अकेले सहा नहीं जाता
 
(4)
 
चरण हैं चलता हूँ
चलता हूँ चलता हूँ
फूल में
कि
धूल में
चलता
मन
चलता हूँ
ओखी धार दिन की
अकेले बहा नहीं जाता।
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,118
edits