भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घास / पाश

5 bytes added, 19:12, 24 मार्च 2013
<poem>
मैं घास हूँ
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगाआऊँगा 
बम फेंक दो चाहे विश्‍वविद्यालय पर
बना दो होस्‍टल को मलबे का ढेर
सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर
मुझे मेरा क्‍या करोगेमैं तो घास हूँ हर चीज़ पर उग आऊंगाआऊँगा 
बंगे को ढेर कर दो
संगरूर मिटा डालो
मुझे बरनाला उतार देना
जहाँ हरे घास का जंगल है
 मैं घास हूँ, मैं अपना काम करूंगाकरूँगामैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा।आऊँगा ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,708
edits