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07:15, 9 अप्रैल 2013 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=गुलज़ार
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
मचल के जब भी आँखों से छलक जाते हैं दो आँसू
सुना है आबोशारों को बड़ी तकलीफ़ होती है(१)
खुदारा अब तो बुझ जाने दो इस जलती हुई लौ को
चरागों से मजारों को बड़ी तकलीफ़ होती है(२)
कहू क्या वो बड़ी मासूमियत से पूछ बैठे है
क्या सचमुच दिल के मारों को बड़ी तकलीफ़ होती है(३)
तुम्हारा क्या तुम्हें तो राह दे देते हैं काँटे भी
मगर हम खांकसारों को बड़ी तकलीफ़ होती है(४)
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