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Kavita Kosh से
रहना नहीं देस बिराना है।
यह संसार कागद की पुडि़यापुड़िया, बूँद पड़े घुल जाना है।
यह संसार कॉंट की बाड़ी, उलझ-पुलझ मरि जाना है।