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|रचनाकार=सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
}}
{{KKCatKavita}}<poem>एक-दूसरे को बिना जाने<br>पास-पास होना<br>और उस संगीत को सुनना<br>जो धमनियों में बजता है,<br>उन रंगों में नहा जाना<br>जो बहुत गहरे चढ़ते-उतरते हैं ।<br><br>
शब्दों की खोज शुरु होते ही<br>हम एक-दूसरे को खोने लगते हैं<br>और उनके पकड़ में आते ही<br>एक-दूसरे के हाथों से<br>मछली की तरह फिसल जाते हैं ।<br><br>
हर जानकारी में बहुत गहरे<br>ऊब का एक पतला धागा छिपा होता है,<br>कुछ भी ठीक से जान लेना<br>खुद से दुश्मनी ठान लेना है ।<br><br>
कितना अच्छा होता है<br>एक-दूसरे के पास बैठ खुद को टटोलना,<br>और अपने ही भीतर<br>दूसरे को पा लेना ।<br><br>
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