Changes

|रचनाकार=सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
}}
{{KKCatKavita}}<poem>तुम्हारे साथ रहकर<br>अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है<br>कि दिशाएँ पास आ गयी हैं,<br>हर रास्ता छोटा हो गया है,<br>दुनिया सिमटकर<br>एक आँगन-सी बन गयी है<br>जो खचाखच भरा है,<br>कहीं भी एकान्त नहीं<br>न बाहर, न भीतर।<br><br>
हर चीज़ का आकार घट गया है,<br>पेड़ इतने छोटे हो गये हैं<br>कि मैं उनके शीश पर हाथ रख<br>आशीष दे सकता हूँ,<br>आकाश छाती से टकराता है,<br>मैं जब चाहूँ बादलों में मुँह छिपा सकता हूँ।<br><br>
तुम्हारे साथ रहकर<br>अक्सर मुझे महसूस हुआ है<br>कि हर बात का एक मतलब होता है,<br>यहाँ तक की घास के हिलने का भी,<br>हवा का खिड़की से आने का,<br>और धूप का दीवार पर<br>चढ़कर चले जाने का।<br><br>
तुम्हारे साथ रहकर<br>अक्सर मुझे लगा है<br>कि हम असमर्थताओं से नहीं<br>सम्भावनाओं से घिरे हैं,<br>हर दिवार में द्वार बन सकता है<br>और हर द्वार से पूरा का पूरा<br>पहाड़ गुज़र सकता है।<br><br>
शक्ति अगर सीमित है<br>तो हर चीज़ अशक्त भी है,<br>भुजाएँ अगर छोटी हैं,<br>तो सागर भी सिमटा हुआ है,<br>सामर्थ्य केवल इच्छा का दूसरा नाम है,<br>जीवन और मृत्यु के बीच जो भूमि है<br>वह नियति की नहीं मेरी है।<br><br>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,137
edits