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|रचनाकार=सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
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इब्नबतूता पहन के जूता<br>निकल पड़े तूफान में<br>थोड़ी हवा नाक में घुस गई<br>घुस गई थोड़ी कान में<br>
कभी नाक को, कभी कान को<br>मलते इब्नबतूता<br>इसी बीच में निकल पड़ा<br>उनके पैरों का जूता<br>
उड़ते उड़ते जूता उनका<br>जा पहुँचा जापान में<br>इब्नबतूता खड़े रह गये<br>
मोची की दुकान में।