|रचनाकार= नामवर सिंह
}}
{{KKCatNavgeet}}<poem>पथ में सांझसाँझ
पहाड़ियाँ ऊपर
पीछे अँके झरने का पुकारना।पुकारना ।
सीकरों की मेहराब की छाँव में
छूटे हुए कुछ का ठुनकारना।ठुनकारना ।
एक ही धार में डूबते
दो मनों का टकराकर
दीठ निवारना ।
दीठ निवारना। याद है : चीड़ी की टूक से चांद चाँद पै तैरती आँख में आँख का ढारना?</poem>