भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'6. {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज गोस्वामी }} {{KKCatGhazal}} <poem> नजाकत ह...' के साथ नया पन्ना बनाया
6.
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नीरज गोस्वामी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
नजाकत है न खुश्बू औ’ न कोई दिलकशी ही है
गुलों के साथ फिर भी खार को रब ने जगह दी है
किसी की याद चुपके से चली आती है जब दिल में
कभी घुँघरू से बजते हैं, कभी तलवार चलती है
वही करते हैं दावा आग नफरत की बुझाने का
कि जिनके हाथ में जलती हुई माचिस की तीली है
हटो, करने दो अपने मन की भी इन नौजवानों को
ये इनका दौर है, इनका समय है, इनकी बारी है
घुटन, तड़पन, उदासी, अश्क, रुसवाई, अकेलापन
बग़ैर इनके अधूरी इश्क की हर इक कहानी है
कभी बच्चों को मिल कर खिलखिलाते नाचते देखा
लगा तब जिंदगी ये हमने क्या से क्या बना ली है
उतर आये हैं बादल याद के आंखों में यूं “नीरज”
ज़मीं जो कल तलक सूखी थी अब वो भीगी भीगी है
</poem>
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नीरज गोस्वामी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
नजाकत है न खुश्बू औ’ न कोई दिलकशी ही है
गुलों के साथ फिर भी खार को रब ने जगह दी है
किसी की याद चुपके से चली आती है जब दिल में
कभी घुँघरू से बजते हैं, कभी तलवार चलती है
वही करते हैं दावा आग नफरत की बुझाने का
कि जिनके हाथ में जलती हुई माचिस की तीली है
हटो, करने दो अपने मन की भी इन नौजवानों को
ये इनका दौर है, इनका समय है, इनकी बारी है
घुटन, तड़पन, उदासी, अश्क, रुसवाई, अकेलापन
बग़ैर इनके अधूरी इश्क की हर इक कहानी है
कभी बच्चों को मिल कर खिलखिलाते नाचते देखा
लगा तब जिंदगी ये हमने क्या से क्या बना ली है
उतर आये हैं बादल याद के आंखों में यूं “नीरज”
ज़मीं जो कल तलक सूखी थी अब वो भीगी भीगी है
</poem>