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<poem>

उन निगाहों का मोरचा टूटा
क़सरे<refकिला</ref> दिल का मुहासरा टूटा

कुछ सलामत नहीं था दुनिया में
जिस घड़ी मेरा हौसला टूटा

सच बताओ हमारी आहट पर
किस मुनाफ़िक़<ref> गद्दार</ref> का क़हक़हा टूटा

कितने हिस्सों में बँट गया हूँ मैं
अक्स बिखरा या आईना टूटा

आज़मा कर तुझे भी देख लिया
आज इक और वाहिमा<ref> भ्रम</ref> टूटा

नींद आयी कहाँ है आँखों में
जब से ख़्वाबों का सिलसिला टूटा

दिल भी बाज़ार से कहाँ तक लाऊँ
एक हफ़्ते में दूसरा टूटा

रात पलकों पे आ के लेट गयी
और ग़ज़ल का भी क़ाफ़िया<ref> तुकान्त</ref> टूटा
<poem>
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