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मन / नीरज दइया

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|रचनाकार=नीरज दइया
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{{KKCatKavita‎}}<poem>बंधे हमारे मन
सात फेरों के बाद...

मन का क्या!

बंध सकता है वह
बिना फेरों के भी।

नहीं बंधे तो
सारे बंधन बेमानी।</poem>
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