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|रचनाकार=मंगलेश डबराल
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पुरानी तस्वीरों में ऐसा क्या है
जो जब दिख जाती हैं तो मैं गौर से देखने लगता हूँ
क्या वह सिर्फ़ एक चमकीली युवावस्था है
सिर पर घने बाल नाक-नक़्श कुछ कोमल
जिन पर माता-पिता से पैदा होने का आभास बचा हुआ है
आंखें जैसे दूर और भीतर तक देखने की उत्सुकता से भरी हुई
बिना प्रेस किए कपड़े उस दौर के
जब ज़िंदगी ऐसी ही सलवटों में लिपटी हुई थी
पुरानी तस्वीरों इस तस्वीर में ऐसा क्या है<br>जो जब दिख जाती हैं तो मैं गौर से देखने लगता हूँ<br>अपने वास्तविक रूप मेंक्या वह सिर्फ़ एक चमकीली युवावस्था है<br>सिर स्वप्न सरीखा चेहरे पर घने बाल नाक-नक़्श कुछ कोमल<br>अपना हृदय लिए हुएजिन पर माता-पिता अपने ही जैसे बेफ़िक्र दोस्तों के साथएक हल्के बादल की मानिंद जो कहीं से पैदा होने का आभास बचा तैरता हुआ आया है<br>आंखें जैसे दूर और भीतर तक देखने की उत्सुकता से भरी हुई<br>बिना प्रेस किए कपड़े उस दौर एक क्षण के<br>लिए एक कोने में टिक गया हैजब ज़िंदगी ऐसी ही सलवटों कहीं कोई कठोरता नहीं कोई चतुराई नहींआंखों में लिपटी हुई थी<br><br>कोई लालच नहीं
इस यह तस्वीर में मैं हूँ अपने वास्तविक रूप में<br>सुबह एक स्वप्न सरीखा चेहरे नुक्कड़ पर अपना हृदय लिए हुए<br>अपने ही जैसे बेफ़िक्र दोस्तों के साथ<br>एक हल्के बादल ढाबे में चाय पीते समय की मानिंद जो कहीं से तैरता हुआ आया है<br>उसके आसपास की दुनिया भी सरल और एक क्षण के लिए एक कोने में टिक गया मासूम है<br>कहीं कोई कठोरता नहीं कोई चतुराई नहीं<br>चाय के कप, नुक्कड़ और सुबह की ही तरहआंखों में कोई लालच नहीं<br><br>ऐसी कितने ही तस्वीरें हैं जिन्हें कभी-कभी दिखलाता भी हूँघर आए मेहमानों को
यह तस्वीर सुबह एक नुक्कड़ पर एक ढाबे में चाय पीते समय की है<br>उसके आसपास की दुनिया भी सरल और मासूम है<br>चाय के कप, नुक्कड़ और सुबह की ही तरह<br>ऐसी कितने ही तस्वीरें हैं जिन्हें कभी-कभी दिखलाता भी हूँ<br>घर आए मेहमानों को<br><br> और अब यह क्या है कि मैं अक्सर तस्वीरें खिंचवाने से कतराता हूँ<br>खींचने वाले से अक्सर कहता हूँ रहने दो<br>मेरा फोटो अच्छा नहीं आता मैं सतर्क हो जाता हूँ<br>जैसे एक आइना सामने रख दिया गया हो<br>सोचता हूँ क्या यह कोई डर है है मैं पहले जैसा नहीं दिखूंगा<br>शायद मेरे चेहरे पर झलक उठेंगी इस दुनिया की कठोरताएं<br>और चतुराइयाँ और लालच<br>इन दिनों हर तरफ़ ऐसी ही चीजों की तस्वीरें ज़्यादा दिखाई देती हैं<br>जिनसे लड़ने की कोशिश में<br>
मैं कभी-कभी इन पुरानी तस्वीरों को ही हथियार की तरह उठाने की सोचता हूँ
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