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{{KKRachna
|रचनाकार=जयशंकर प्रसाद
|संग्रह=झरना / जयशंकर प्रसाद
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<poem>
मधुर हैं स्रोत मधुर हैं लहरी
न हैं उत्पात, छटा हैं छहरी
मनोहर झरना।
'''मुखपृष्ठ: [[झरना / जयशंकर प्रसाद]]'''कठिन गिरि कहाँ विदारित करना बात कुछ छिपी हुई हैं गहरी मधुर हैं स्रोत मधुर हैं लहरी
कल्पनातीत काल की घटना
हृदय को लगी अचानक रटना
देखकर झरना।
मधुर हैं स्रोत मधुर हैं लहरी<br>प्रथम वर्षा से इसका भरना न हैं उत्पात, छटा हैं छहरी<br>स्मरण हो रहा शैल का कटना मनोहर झरना।<br><br>कल्पनातीत काल की घटना
कठिन गिरि कहाँ विदारित करना<br>कर गई प्लावित तन मन सारा बात कुछ छिपी हुई हैं गहरी<br>एक दिन तब अपांग की धारा मधुर हैं स्रोत मधुर हैं लहरी<br><br>हृदय से झरना-
कल्पनातीत काल की घटना<br>बह चला, जैसे दृगजल ढरना। हृदय को लगी अचानक रटना<br>प्रणय वन्या ने किया पसारा देखकर झरना।<br><br>कर गई प्लावित तन मन सारा
प्रथम वर्षा से इसका भरना<br>प्रेम की पवित्र परछाई में स्मरण हो रहा शैल का कटना<br>लालसा हरित विटप झाँई में कल्पनातीत काल की घटना<br><br>बह चला झरना।
कर गई प्लावित तन मन सारा<br>एक दिन तब अपांग की धारा<br>हृदय से झरना-<br><br> बह चला, जैसे दृगजल ढरना।<br>प्रणय वन्या ने किया पसारा<br>कर गई प्लावित तन मन सारा<br><br> प्रेम की पवित्र परछाई में<br>लालसा हरित विटप झाँई में<br> बह चला झरना।<br><br> तापमय जीवन शीतल करना <br> सत्य यह तेरी सुघराई में<br>प्रेम की पवित्र परछाई में॥ <br><br/poem>
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