भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
<Poem>
प्रियतम! कैसे तुम्हें समझाऊँ कि वह अहंकार नहीं है?
वह आत्म-दमन है, घोर यातना है, किन्तु वह मेरा स्त्रीत्व का अभिमान भी है, मेरे प्राणों की अभिन्नतम पीड़ा जिस के बिना मैं जी नहीं सकती!
''' डलहौजी, सितम्बर, 1934'''
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,130
edits