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|रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र
}}
{{KKCatPad}}<poem>ऊधो जो अनेक मन होते
तो इक श्याम-सुन्दर को देते, इक लै जोग संजोते।
एक सों सब गृह कारज करते, एक सों धरते ध्यान।