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{{KKParichay
|चित्र=
|नाम=फ़तह उद-दौला बख़्शी-उल मुल्क मिर्ज़ा मोहम्मद रज़ा 'बर्क़'ख़ान|उपनाम=मिर्ज़ा रज़ा 'बर्क़'
|जन्म=1790
|जन्मस्थान=लखनऊ, भारत
|मृत्यु=1857
|कृतियाँ=इन्तिख़ाब-ए-गज़लियत-ए-बर्क़|विविध=मिर्ज़ा काज़िम अली के पुत्र और अवध के बादशाह वाज़िद अली शाह के मित्र। अँग्रेज़ॊ द्वारा राजपात छीने जाने के बाद उनके साथ कलकत्ता गए। जहाँ उनका निधन हो गया। तलवार के धनी थे।
|सम्पर्क=
|अंग्रेज़ीनाम=mirza raza barq
|जीवनी=[[मिर्ज़ा रज़ा 'बर्क़' / परिचय]]
}}
{{KKCatUttarPradesh}}
{{KKShayar}}
====ग़ज़लें====* [[ ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है / मिर्ज़ा रज़ा 'बर्क़']]* [[गया शबाब ने पैग़ाम-ए-वस्ल-ए-यार आया / मिर्ज़ा रज़ा 'बर्क़']]* [[किस तरह मिलें कोई बहाना नहीं मिलता / मिर्ज़ा रज़ा 'बर्क़']]* [[मैं अगर रोने लगूँ रूतबा-ए-वाला बढ़ जाए / मिर्ज़ा रज़ा 'बर्क़']]* [[पर्दा उलट के उस ने जो चेहरा दिखा दिया / मिर्ज़ा रज़ा 'बर्क़']]* [[रंग से पैरहन-ए-सादा हिनाई हो जाए / मिर्ज़ा रज़ा 'बर्क़']]* [[ज़ेर-ए-ज़मीं हूँ तिश्ना-ए-दीदार-ए-यार का / मिर्ज़ा रज़ा 'बर्क़']]* [[न कोई उन के सिवा और जान-ए-जाँ देखा / मिर्ज़ा रज़ा 'बर्क़']]