गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
हरित फौवारों सरीखे धान / नामवर सिंह
No change in size
,
22:16, 30 जून 2013
जोत का जल पोंछती-सी छाँह
धूप में रह-रहकर उभर आए
स्वप्न के
चिथ़डे
चिथड़े
नयन-तल आह
इस तरह क्यों पोंछते जाएँ ?
</poem>
अनिल जनविजय
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,118
edits