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बेटियाँ / कुँअर बेचैन

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{{KKRachna
|रचनाकार=कुँअर बेचैन
}}{{KKCatKavita}}[[चित्र:Republic.jpg|left|thumb|141px]]          <poem>
बेटियाँ-
 
शीतल हवाएँ हैं
 
जो पिता के घर बहुत दिन तक नहीं रहतीं
 
ये तरल जल की परातें हैं
 
लाज़ की उज़ली कनातें हैं
 
है पिता का घर हृदय-जैसा
 
ये हृदय की स्वच्छ बातें हैं
बेटियाँ -
 
पवन-ऋचाएँ हैं
 
बात जो दिल की, कभी खुलकर नहीं कहतीं
 
हैं चपलता तरल पारे की
 
और दृढता ध्रुव-सितारे की
 
कुछ दिनों इस पार हैं लेकिन
 
नाव हैं ये उस किनारे की
बेटियाँ-
 
ऐसी घटाएँ हैं
 
जो छलकती हैं, नदी बनकर नहीं बहतीं
'''''-- यह कविता [[Dr.Bhawna Kunwar]] द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।<br><br>'''''
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