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{{KKRachna
|रचनाकार=अनिल जनविजय
|संग्रह=माँ, बापू कब आएंगे
}}
अंधेरे को
रोशनी में बदलने की
कोशिश करते रहे
रात भर
दूध-से सफ़ेद
चीनी के दाने
पृथ्वी पर गिरते रहे
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|रचनाकार=अनिल जनविजय
|संग्रह=माँ, बापू कब आएंगे
}}
अंधेरे को
रोशनी में बदलने की
कोशिश करते रहे
रात भर
दूध-से सफ़ेद
चीनी के दाने
पृथ्वी पर गिरते रहे
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