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Kavita Kosh से
मुझे स्याहियों में न पाओगे
मैं मिलूंगा लफ़्ेज़ों लफ़्ज़ों की धूप में
मुझे रोशनी की है जुस्तज़ू
मैं किरन-किरन में बिखर गया।
उसे क्या सुनाता मैं दास्ताँ, वो तो आईना देख के डर गया।