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|रचनाकार=कन्हैयालाल नंदन
}}
{{KKCatKavita}}<poem>खारेपन का अहसास<br>मुझे था पहले से<br>पर विश्वासों का दोना<br>सहसा बिछल गया<br>कल ,<br>मेरा एक समंदर<br>गहरा-गहरा सा<br>मेरी आंखों के आगे उथला निकल गया।<br><br>
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