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मां अर म्हैं /अंकिता पुरोहित

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|रचनाकार=अंकिता पुरोहित
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<poem>मां कद झलाया
सगळा बरत
थूं कद बैठगी
ऊंडै आय’र म्हारै
है ज्यूं री ज्यूं?</poem>
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