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कहाँ आके रुकने थे रास्ते कहाँ मोड़ था उसे भूल जा
तुझे ज़िन्दगी ने भुला दिया तू भी मुस्कुरा उसे भूल जा.
क्यूँ अटा हुआ है गुबार में ग़मे ज़िंदगी के फिशर फिशार में
वो जो दर्द था तेरे वक्त में सो हो गया उसे भूल जा
 
तुझे चाँद बन के मिला था जो, तेरे साहिलों पे खिला था जो
वो था एक दरिया विसाल का, सो उतर गया उसे भूल जा
न वो आँख हीं तेरी आँख थी न वो ख़्वाब हीं तेरा ख्वाब था
जो बिसाते-जाँ ही उलट गया, वो जो रास्ते से पलट गया,
उसे रोकने से हुसूल क्या? उसे भूल जा...उसे भूल जा.  तो ये किसलिए शबे हिज्र के उसे हर सितारे में देखना वो फ़लक के जिसपे मिले थे हम कोई और था उसे भूल जा.  तुझे चाँद बन के मिला था जो, तेरे साहिलों पे खिला था जोवो था एक दरिया विसाल का, सो उतर गया उसे भूल जा.
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