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जोकि मैं ने जन्म से पाई
जब कहीं बदली उठी ग़म की
नयन में वर्षा ंउतर उतर आई ।
पाँव मेरे जंगलों भटके
राज पथ पर क्यों फिसलते हैं ।
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