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|रचनाकार=बोधिसत्व
|संग्रह=ख़त्म नही होती बात / बोधिसत्व
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<poem>
पिता थोड़े दिन और जीना चाहते थे
वे हर मिलने वाले से कहते कि
बहुत नहीं दो साल तीन साल और मिल जाता बस।
वे ज़िंदगी को ऐसे माँगते थे जैसे मिल सकती है
किराने की दुकान पर।