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|रचनाकार=जयशंकर प्रसाद
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हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मंदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा।।
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"भारत महिमा" से