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Kavita Kosh से
आराम ज़िन्दगी की कुंजी, इससे न तपेदिक होती है
आराम सुधा की एक बूंदबूँद, तन का दुबलापन खोती है
आराम शब्द में 'राम' छिपा जो भव-बंधन को खोता है
आराम शब्द का ज्ञाता तो विरला ही योगी होता है
जो ओठ हिलाने में रस है, वह कभी न हाथ हिलाने में
तुम मुझसे पूछो बतलाऊँ, है मज़ा मूर्ख कहलाने में
जीवन-जागृति में क्या रक्खा , जो रक्खा है सो जाने में।
मैं यही सोचकर पास अक्ल के, कम ही जाया करता हूँ
जो बुद्धिमान जन होते हैं, उनसे कतराया करता हूँ
जो मिलता है, खा लेता हूँ, चुपके सो जाया करता हूँ
मेरी गीता में लिखा हुआ, सच्चे योगी जो होते हैं