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भीख माँगते उसी त्रिलोचन को देखा कल
जिस को समझे समझा था है तो है यह फ़ौलादी
ठेस-सी लगी मुझे, क्योंकि यह मन था आदी
नहीं; झेल जाता श्रद्धा की चोट अचंचल,
नहीं संभाल सका अपने को । ; जाकर पूछा'भिक्षा से क्या मिलता है। है; 'जीवन।जीवन' 'क्या इसकोअच्छा आप समझते हैं ।' 'दुनिया में जिसको
अच्छा नहीं समझते हैं करते हैं, छूछा
पेट काम तो नहीं करेगा ।' 'मुझे आप सेऎसी आशा न थी ।' 'आप ही कहें, क्या करूँ,
खाली पेट भरूँ, कुछ काम करूं कि चुप मरूँ,
क्या अच्छा है ।' जीवन जीवन है प्रताप से,