भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
}}
{{KKPrasiddhRachna}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
घन गरजे जन गरजे
बन्दी सागर को लख कातर
एक रोष से
घन गरजे जन गरजे
क्षत-विक्षत लख हिमगिरी अन्तर
एक रोष से
घन गरजे जन गरजे
क्षिति की छाती को लख जर्जर
एक शोध से
घन गरजे जन गरजे
देख नाश का ताण्डव बर्बर
एक बोध से
घन गरजे जन गरजेगरजे।