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Kavita Kosh से
यही शर्त ठंडे लोहे की
ओ मेरी आत्मा की संगिनी !
तुम्हें समर्पित मेरी सांस सांस थी, लेकिन
मेरी सासों में यम के तीखे नेजे सा
कौन अड़ा है ? ठंडा लोहा !
मेरे और तुम्हारे भोले निश्चल विश्वासों को
कुचलने कौन खड़ा है ?
ठंडा लोहा !
ओ मेरी आत्मा की संगिनी !
अगर जिंदगी की कारा में
कभी छटपटाकर मुझको आवाज़ लगाओ
विवश हवाएं
शीश झुकाए खड़ी मौन हैं
बचा कौन है ? ठंडा लोहा ! ठंडा लोहा ! ठंडा लोहा !
</poem>
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