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Kavita Kosh से
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कभी पूरी नींद तक भी
न सोने वाली औरतो औरतों!
मेरे पास आओ,
दर्पण है मेरे पास
कैसे मुस्कुरा लेते हैं इतना,
और, आप !
जरा गौर से देखिए
सुराहीदार गर्दन के
टूटे पुलों के छोरों पर
तूफान पार करने की
उम्मीद लगाई औरतो औरतों !
जमीन धसक रही है
पहाड़ दरक गए हैं
बह गई हैं - चौकियाँ
शाखें लगातार काँपती गिर रही हैं
जंगल
एक दर्पण
चमकीला।
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