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रिश्ते-1 / कविता वाचक्नवी

4 bytes added, 05:36, 16 जुलाई 2013
अलगे-से चुपचाप चल रहे
ये पल दो पल के रिश्ते
 
कभी गाँठ से बंध जाते हैं
कब छाया कब चीरहरण, हो
जाते आँचल के रिश्ते
 
आते हैं सूरज बन, सूने
आँज अँधेरा भरते आँखें
छल-छल ये छल के रिश्ते
 
कच्चे धागों के बंधन तो
बड़ी रीतियाँ जुगत रचाईं
टूटे साँकल के रिश्ते
 
एक सफेदी की चादर ने
आज अमंगल और अपशकुन
कल के मंगल के रिश्ते
</poem>
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