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Kavita Kosh से
धरती जब अकुलाती है
घन-अंजन आँखों से चुपचुप
बरसें बादल -से रिश्ते
पलकों में भर देने वाली
उंगली पर रह जाते हैं
बैठ अलक काली नजरों का
जल हैं, काजल -से रिश्ते
कभी तोड़ देते अपनापन
कभी लिपट कर रोते हैं
कभी पकड़ से दूर सरकते
जाते, पागल -से रिश्ते
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