भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रिश्ते-2 / कविता वाचक्नवी

3 bytes removed, 05:37, 16 जुलाई 2013
धरती जब अकुलाती है
घन-अंजन आँखों से चुपचुप
बरसें बादल -से रिश्ते
पलकों में भर देने वाली
उंगली पर रह जाते हैं
बैठ अलक काली नजरों का
जल हैं, काजल -से रिश्ते
कभी तोड़ देते अपनापन
कभी लिपट कर रोते हैं
कभी पकड़ से दूर सरकते
जाते, पागल -से रिश्ते
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,131
edits