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|रचनाकार=मीराबाई
}}
[[Category:पद]]{{KKCatPad}}<poeMpoem>नैना निपट बंकट छबि अटके। 
देखत रूप मदनमोहन को, पियत पियूख न मटके।
 
बारिज भवाँ अलक टेढी मनौ, अति सुगंध रस अटके॥
 
टेढी कटि, टेढी कर मुरली, टेढी पाग लट लटके।
 
'मीरा प्रभु के रूप लुभानी, गिरिधर नागर नट के॥
 
 
</poeM>
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