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Kavita Kosh से
जब तेरा हुक्म मिला, तर्क मुहब्बत कर दी,<br>
दिल मगर स उस पे वो धडका, कि क़यामत कर दी|<br><br>
तुझसे किस तरह मैं इज़हार-ए-तमन्ना करता,<br>
मैं तो समझा था कि लौट आते हैं जाने वाले,<br>
तूने जाकर तो जुदाइ जुदाई मेरी कि़स्मत कर दी|<br><br>
मुझको दुश्मन के रादों वादों पे भी प्यार आता है,<br>तेरी ल्फ़त उल्फ़त ने मुहब्बत मेरी आदत कर दी|<br><br>
पूछ बैठा हूंहूँ, मैं तुझसे तेरे कूचे का पता,<br>
तेरी हालत ने कैसी तेरी सूरत कर दी|<br><br>