भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
}}
मरूं तो मैं किसी चेहरे में रंग भर जाऊं|<br>नदीम! काश यही एक काम कर जाऊं|<br><br>
ये दश्त-ए-तर्क-ए-मुहब्बत ये तेरे क़ुर्ब की प्यास,<br>जो इज़ां हो तो तेरी याद से गुज़र जाऊं|<br><br>
मेरा वजूद मेरी रूह को पुकारता है,<br>तेरी तरफ़ भी चलूं तो ठहर ठहर जाऊं|<br><br>
तेरे जमाल का परतो है सब हसीनों पर<br>कहां कहां तुझे ढूंढूं किधर किधर जाऊं|<br><br>
मैं जि़न्दा था कि तेरा इन्तज़ार ख़त्म न हो,<br>जो तू मिला है तो अब सोचता हूं मर जाऊं|<br><br>
ये सोचता हूं कि मैं बुत-परस्त क्यूं न हुआ,<br>तुझे क़रीब जो पाऊं तो ख़ुद से डर जाऊं|<br><br>
किसी चमन में बस इस ख़ौफ़ से गुज़र न हुआ,<br>किसी कली पे न भूले से पांव धर जाऊं|<br><br>
ये जी में आती है, तख़्लीक़-ए-फ़न के लम्हों में,<br>कि ख़ून बन के रग-ए-संग में उतर जाऊं| तख़्लीक़-ए-फ़न<br><br>