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|रचनाकार=अहमद नदीम काज़मीक़ासमी
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
मरूँ तो मैं किसी चेहरे में रंग भर जाऊँ|
नदीम! काश यही एक काम कर जाऊँ|
मरूँ ये दश्त-ए-तर्क-ए-मुहब्बत ये तेरे क़ुर्ब की प्यास,जो इज़ाँ हो तो मैं किसी चेहरे में रंग भर जाऊँ|<br>नदीम! काश यही एक काम कर तेरी याद से गुज़र जाऊँ|<br><br>
ये दश्त-ए-तर्क-ए-मुहब्बत ये तेरे क़ुर्ब की प्यासमेरा वजूद मेरी रूह को पुकारता है,<br>जो इज़ाँ हो तो तेरी याद से गुज़र तरफ़ भी चलूं तो ठहर ठहर जाऊँ|<br><br>
मेरा वजूद मेरी रूह को पुकारता तेरे जमाल का परतो है,<br>सब हसीनों परतेरी तरफ़ भी चलूं तो ठहर ठहर कहाँ कहाँ तुझे ढूंढूँ किधर किधर जाऊँ|<br><br>
तेरे जमाल का परतो है सब हसीनों पर<br>मैं ज़िन्दा था कि तेरा इन्तज़ार ख़त्म न हो,कहाँ कहाँ तुझे ढूंढूँ किधर किधर जो तू मिला है तो अब सोचता हूँ मर जाऊँ|<br><br>
मैं ज़िन्दा था ये सोचता हूं कि तेरा इन्तज़ार ख़त्म मैं बुत-परस्त क्यूँ न होहुआ,<br>तुझे क़रीब जो तू मिला है पाऊँ तो अब सोचता हूँ मर ख़ुद से डर जाऊँ|<br><br>
ये सोचता हूं कि मैं बुत-परस्त क्यूँ किसी चमन में बस इस ख़ौफ़ से गुज़र न हुआ,<br>तुझे क़रीब जो पाऊँ तो ख़ुद किसी कली पे न भूले से डर पाँव धर जाऊँ|<br><br>
किसी चमन में बस इस ख़ौफ़ से गुज़र न हुआ,<br>किसी कली पे न भूले से पाँव धर जाऊँ|<br><br> ये जी में आती है, तख़्लीक़-ए-फ़न के लम्हों में,<br>कि ख़ून बन के रग-ए-संग में उतर जाऊँ|<br><br/poem>
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