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मेरा उपनाम ‘अकेला’ है लेकिन मैं ‘अकेला’ नहीं हूँ । मेरे साथ बहुत लोग हैं। अपने उन्हीं साथियों की वजह से मैं ‘शेष बची चौथाई रात’ के दर्द भरे आखि़री पहर से उबर कर ‘सुब्ह की दस्तक’ सुन सका हूँ । अब मुझे रात से कोई शिकायत नहीं-
व्यंग्यकार श्री संजय खरे ‘संजू’ और कहानीकार, समीक्षक श्री सत्यम् श्रीवास्तव, जो मुझे अग्रजवत् सम्मान देते हैं, ने भी अपने स्तर पर मुझे सहयोग प्रदान किया । इन दोनों अनुजों के उज्जवल भविष्य की मैं कामना करता हूँ ।
18.02.2005
''' छत्रसाल नगर, छतरपुर (म.प्र.)'''
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