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{{KKRachna
|रचनाकार=अचल वाजपेयी
|संग्रह=शत्रु-शिविर तथा अन्य अंय कविताएँ / अचल वाजपेयी
}}
कमरे में प्रवेश कर गया है
अंधेरे बन्द बंद कमरे का कोना-कोना
उजास से भर गया है
मेरी गोद में आ गया है
काँटों से गुँथे हुए गुलाब
एक धुन है जो अन्तहीन अंतहीन निविड़ में
दूर तक गहरे उतरती है
मेरे चारों ऒर ओर उसने
एक रक्षा-कवच बुन दिया है
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