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Kavita Kosh से
हिज्जे
उन स्वरों को छेड़ा
जो सदियों से मात्र सम्वादी संवादी थे
पथरीले द्वारों पर
दस्तकों का होना भर था
वह न होने का प्रारम्भ प्रारंभ था
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