भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उस रोज़ भी / अचल वाजपेयी

6 bytes removed, 03:40, 29 जून 2008
हिज्जे
उन स्वरों को छेड़ा
जो सदियों से मात्र सम्वादी संवादी थे
पथरीले द्वारों पर
दस्तकों का होना भर था
वह न होने का प्रारम्भ प्रारंभ था
Anonymous user