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*{{kKGlobalKKGlobal}}{{KKRachna | रचनाकार=रमा द्विवेदी
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<poem>
बुझता दिया सुकूं का इंसान ही के कारण
बुझता दिया यकीं का इंसान ही के कारण।
बुझता दिया मुहब्बत का इंसान ही के कारण
आते हैं दुख जीवन में इंसान ही के कारण॥
पर उम्मीद का दिया तो दिन-रात जल रहा है
बुझता नहीं कभी वो आंधियों से लड़ रहा है।
उम्मीद पर बनीं हैं दुनियां की हर मीनारें,
उम्मीद पर टिकी हैं जीवन की हर इच्छाएं॥
बुझता दिया सुकूं का इंसान उम्मीद पर ही देखो आसमां भी छू के कारण<br>आएंबुझता दिया यकीं का इंसान उम्मीद पर ही के कारण।<br>देखो हर जुल्म से टकराएं।बुझता दिया मुहब्बत का इंसान उम्मीद पर ही के कारण<br>देखो दुश्मन जा भिड़ जाएंआते हैं दुख जीवन में इंसान उम्मीद पर ही के कारण ॥<br>देखो क्या-क्या न कर दिखाएं॥
पर उम्मीद का दिया तो दिन-रात जल रहा है<br>बुझता नहीं कभी वो आंधियों के सहारे तुम शान्ति फिर से लड़ रहा है ।<br>लाना उम्मीद के सहारे खोया विश्वास पाना।उम्मीद पर बनीं हैं दुनियां की हर मीनारेंके सहारे चाहत को फिर जगाना,<br>उम्मीद पर टिकी हैं के सहारे जीवन की हर इच्छाएं ॥<br>में बहार लाना॥
उम्मीद पर ही देखो आसमां भी छू के आएं<br>उम्मीद पर ही देखो हर जुल्म से टकराएं ।<br>उम्मीद पर ही देखो दुश्मन जा भिड़ जाएं<br>उम्मीद पर ही देखो क्या-क्या न कर दिखाएं ॥<br> उम्मीद के सहारे तुम शान्ति फिर से लाना <br>उम्मीद के सहारे खोया विश्वास पाना।<br>उम्मीद के सहारे चाहत को फिर जगाना,<br>उम्मीद के सहारे जीवन में बहार लाना ॥<br> उम्मीद की कभी तुम तौहीन यूं न करना,<br>उम्मीद के ही बल पर हर मुश्किल से है गुजरना।<br>उम्मीद का दिया तुम हरदम जलाए रखना ,<br>उम्मीद को बचा कर खुद को बचाए रखना ॥रखना॥<br/poem>
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