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|रचनाकार='फना' निज़ामी कानपुरी
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डूबने वाले की मय्यत पर लाखों रोने वाले हैं
फूट फूट कर जो रोते हैं वही डूबने वाले हैं

किस किस को तुम भूल गए हो ग़ौर से देखो बादा-कशी
शीश महल के रहने वाले पत्थर ढोने वाले हैं

सोने का ये वक़्त नहीं जाग भी जाओ बे-ख़बरों
वरना हम तो तुम ज़्यादा चैन से सोने वाले हैं

आज सुना कर अपना फ़साना हम ये करेंगे अंदाज़ा
कितने दोस्ते हैं हँसने वाले कितने रोने वाले हैं

मैं भी उन्हें पहचान रहा हूँ ग़ौर से देखो बादा-कशी
शायद शैख़-ए-हरम बैठे हैं वो जो कोने वाले हैं
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