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{{KKRachna
|रचनाकार=कामी शाह
}}
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दिल की आवाज़ में क़याम करें
आ मिरे यार आ कलाम करें
तितलियाँ ढूँडने में दिन काटें
और जंगल में एक शाम करें
आईनों को बुलाएँ घर अपने
और चराग़ों को एहतिमाम करें
उस के होंटों को ध्यान में रख कर
सुर्ख़-फूलों को इंतिज़ार करें
जिस के दम से है ये सुख़न आबाद
ये ग़ज़ल भी उसी के नाम करें
</poem>
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|रचनाकार=कामी शाह
}}
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दिल की आवाज़ में क़याम करें
आ मिरे यार आ कलाम करें
तितलियाँ ढूँडने में दिन काटें
और जंगल में एक शाम करें
आईनों को बुलाएँ घर अपने
और चराग़ों को एहतिमाम करें
उस के होंटों को ध्यान में रख कर
सुर्ख़-फूलों को इंतिज़ार करें
जिस के दम से है ये सुख़न आबाद
ये ग़ज़ल भी उसी के नाम करें
</poem>