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{{KKRachna
|रचनाकार=अटल बिहारी वाजपेयी
}} {{KKAnthologyBasant}}{{KKCatKavita}}<poem>'''पहली अनुभूति:'''
पहली अनुभूति : गीत नहीं गाता हूँ<br> <br>बेनकाब बेनक़ाब चेहरे हैं, <br> दाग दाग़ बड़े गहरे हैं <br>टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूँ <br>गीत नहीं गाता हूँ <br>लगी कुछ ऐसी नज़र <br> बिखरा शीशे सा शहर <br><br><br>अपनों के मेले में मीत नहीं पता पाता हूँ <br>गीत नहीं गाता हूँ <br><br>पीठ मे छुरी सा चाँद <br>चांदराहु राहू गया रेखा फांद <br>मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूँ <br>गीत नहीं जाता गाता हूँ <br><br><br>'''दूसरी अनुभूति : ''' गीत नया गाता हूँ<br><br>टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर <br>पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर <br> झरे सब पीले पात <br>कोयल की कुहुक रात <br> प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूँ <br>गीत नया गाता हूँ <br><br>टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी <br> अन्तर की चीर व्यथा पलको पर ठिठकी <br><br>हार नहीं मानूँगा, <br> रार नई ठानुगाठानूँगा, <br> काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ <br> गीत नया गाता हूँ <br/poem>